YUG MURDER CASE: पिता ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में दायर की एसएलपी, हाई कोर्ट ने बरी कर दिया था दोषी को।
हाल ही में हिमाचल प्रदेश में सबसे ज्यादा चर्चे में रहे युग मर्डर केस मैं दोषी पाए गए व्यक्तियों को हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। जिसमें निचली अदालत ने उनको फांसी की सजा दी थी लेकिन 28 सितंबर को हाई कोर्ट ने निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए दो व्यक्तियों को फांसी की जगह उम्र कैद की सजा दे दी है और एक व्यक्ति को बरी कर दिया है और विनोद गुप्ता जो की युग के पिता है उनका कहना है कि जिस व्यक्ति का सबसे ज्यादा हाथ उनके बेटे की मृत्यु में बताया जा रहा है उसे हाई कोर्ट ने बाइजत भारी कर दिया है। इसलिए युग के पिता विनोद गुप्ता ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एसएलपी दायर की है।
2018 में दोषियों को हुई थी फांसी की सजा
वहीं पर बताया जा रहा है कि युग के कातिल को 5 सितंबर 2018 को 4 साल के मासूम की हत्या के मामले में जिला अदालत ने तेजिंदर पाल,चंद्र शर्मा, और विक्रांत बक्शी, को दोषी करार करके फांसी की सजा सुनाई थी लेकिन इसके बाद मामला छानबीन के लिए हाई कोर्ट के पास चला जाता है वहीं पर मामले की सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने दोषी चंद्र शर्मा,और विक्रांत बख्शी, की फांसी की सजा को उम्र कैद में बदल दिया है। वहीं पर तीसरे दोषी तेजिंदर पाल,को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया है।
युग मर्डर केस से संबंधित जानकारी
बताया जा रहा है कि 14 जून 2014 को शिमला के राम बाजार के रहने वाले निवासी विनोद गुप्ता के बेटे युग का अपहरण किया गया था।और वहीं पर सीआईडी के जांच के द्वारा आरोपी उसे रामचंद्रा चौक के पास एक किराए के मकान में ले गए वहां पर उन्होंने युग को बहुत ही बुरी तरह से टॉर्चर किया और हफ्ते भर उसे यहां पर टॉर्चर करने के बाद भराड़ी में नगर निगम के पेयजल टैंक में जिंदा ही फेंक दिया।वहीं पर 22 अगस्त 2016 को विक्रांत बख्शी की निशानदेही पर सीआईडी ने टैंक के अंदर और बाहर से युग की हड्डियां बरामद की और वहीं पर इसके बाद राम बाजार के चंद्र शर्मा और तेजिंदर पाल की गिरफ्तारी हुई।और 25 अक्टूबर 2016 को सभी सबूत जुटाकर सीआईडी ने अदालत में चार सीट पेश की वहीं पर ट्रायल में 100 से अधिक ग़बहो की गवाही समेत अन्य साक्षय के आधार पर पांच सितंबर को जिला अदालत ने तीनों दोषियों को फांसी की सजा सुनाई थी लेकिन जैसे ही मामला हाईकोर्ट में गया तो हाई कोर्ट ने दो व्यक्तियों को फांसी की सजा की जगह उम्र कैद में तब्दील कर दिया और एक व्यक्ति को बाइजत बरी कर दिया।

